दिसम्बर की उस काली चांदनी रात में एक तीक्ष्ण कर्णभेदी आवाज ने गहरी नींद में भी अपना सन्देश दिमाग तक पंहुचा दिया था. ऐसा लगा मानों हाथी ने चिंघाड़ लगाई हो पर यहाँ तो सब- कुछ शांत था सिर्फ रात की आवाजें आ रही थी, लगा शायद कोई सपना देखा हो. कुछ देर की कच्ची - पक्की नींद लगी तो तेजी से बजती डोरबेल और बदहवासी से दरवाजा भड़भड़ाने की आवाज से डर लगा कि इतनी रात गए और इस बदहवासी से दरवाजा कौन खटखटा रहा है. पिताजी ने दरवाजा खोला तो घर का कमिया दरवाजा खुलते ही धड़धड़ा कर घर में घुस आया वह बहुत घबराया हुआ था. घबराहट में उसकी आवाज नहीं निकल पा रही थी. उसने अपनी उखड़ती सांसो के साथ बताया कि "बाबु हाथी घुस गइस हे खेत मा, मोला गन्ना तोड़े के आवाज आइस, मै फइका खोले त ओ ह सामने खड़े रहिस, बाबु मोरेच आंखी मा देखत राहिस. फइका ला ऐसन्हे छोड़ मै पाछू फइका ले भाग आये हो बाबू.
हाथी हमारे घर में, हम तो एकदम रोमांचित हो उठे, हाथी हमें बचपन से अच्छे लगते थे. 'हाथी मेरे साथी' देखने के बाद तो वे साथी ही लगने लगे थे. कमिया की बातों को छोड़ भागे छत पर. चांदनी रात में पांच हाथी हमारे घर के आस-पास दिख रहे थे, चार बड़े हाथी और एक बच्चा. एक हाथी हमारे गन्ने तोड़ चबा रहा था तो एक केले के पेड़ो को उखाड़ रहा था पास ही एक हाथी बच्चा खड़ा था और दो हाथी धान के खेतों से जा रहे थे . इस वक्त मन में खेतों, फसलो के नुकसान का लेश मात्र भी अहसास नही था. हम बहुत रोमांचित और खुश थे. ठीक इसी समय गन्ना चबा रहा हाथी हमारी पोर्च की छत के एकदम सामने इतने पास से गुजरा कि लगा थोडा नीचे झुक उसकी पीठ भी छू सकते है.मन तो कर रहा था कि छू ही ले पर दिमाग होश में था सो बढ़ी हुई दिल की धड़कनों के साथ सिर्फ उसे गुजरता देखते रहे.
पांचो हाथी गन्ना खाते,केले के पेड़ उखाड़ते, धान के खेत रौंदते दूसरी ओर निकल गए. वास्तविक स्थिति का अहसास तो दिन निकलने के बाद उनके द्वारा मचाई गई तबाही देख कर हुआ पर उस वक्त तो अपने घर में जंगली हाथियों का दल देख रोमांच और ख़ुशी के मारे नींद ही भाग गई थी और साथ ही जाग उठा था सारा गाँव. जाने कहाँ -कहाँ से लोगो से ठसाठस भरे दो तीन ट्रक्टर यहाँ से वहां घूमने लगे, दीपावली पर बचे पटाखे निकल आये और गाँव पटाखों की आवाजों से गूंजने लगा.दूर कहीं हाथियों की चिंघाड़ की आवाजें फिर आई मानों सारे कोलाहल से हाथी नाराज हो उठे हो. सुबह चार बजते-बजते सारा कोलाहल शांत हो चुका था और हम भी अपने रोमांच से उबर निद्रा देवी की गोद में लुढ़क पड़े.
पांचो हाथी गन्ना खाते,केले के पेड़ उखाड़ते, धान के खेत रौंदते दूसरी ओर निकल गए. वास्तविक स्थिति का अहसास तो दिन निकलने के बाद उनके द्वारा मचाई गई तबाही देख कर हुआ पर उस वक्त तो अपने घर में जंगली हाथियों का दल देख रोमांच और ख़ुशी के मारे नींद ही भाग गई थी और साथ ही जाग उठा था सारा गाँव. जाने कहाँ -कहाँ से लोगो से ठसाठस भरे दो तीन ट्रक्टर यहाँ से वहां घूमने लगे, दीपावली पर बचे पटाखे निकल आये और गाँव पटाखों की आवाजों से गूंजने लगा.दूर कहीं हाथियों की चिंघाड़ की आवाजें फिर आई मानों सारे कोलाहल से हाथी नाराज हो उठे हो. सुबह चार बजते-बजते सारा कोलाहल शांत हो चुका था और हम भी अपने रोमांच से उबर निद्रा देवी की गोद में लुढ़क पड़े.
अगली सुबह यह अहसास हुआ कि कल की रात रोमांचक रात नहीं अपितु भयानक रात थी.हमारे गाँव से कुछ दूर दुसरे गाँव में हाथियों के दल ने झोपड़ी में रखे धान को खाने झोपडिया तहस-नहस कर डाली.एक अन्य झोपड़ी भी तोड़ डाली गाँव वालों का कहना था कि उस झोपड़ी में लांदा रखा हुआ था. लांदा एक प्रकार कि शराब होती है जिसकी गंध से हाथी आकर्षित होते है. इसमें झोपड़ी मालिक की बूढी माँ दब गई और टूटती झोपड़ी से बच कर भाग रहे झोपड़ी मालिक और उसके बाकी परिवार को देख जाने एक हाथी को जाने क्या लगा कि उसने दौड़ा कर उन्हें कुचल दिया.आदमी की ही तरह हाथी ने भी पटाखों और गाँव वालो के कोलाहल का डर/गुस्सा कमजोर पर ही निकाला.एक हंसता-खेलता परिवार पल भर में बिखर गया.हाथियों ने गाँव के अधिकांश खलिहानों को भी नष्ट कर डाला.हाथियों के गुजरने के बाद पूरा गाँव ऐसा दिख रहा था मानो कोई तूफान गुजरा हो और जन-धन दोनों लेता गया हो.
हमारा रोमांच वास्तव में गांववालों के लिए जिंदगी और मौत का भयानक क्षण था एक ही पल के रोमांचक और भयानक होने के अंतर का अहसास हुआ कि रोमांच सुरक्षित स्थिति में ही होता है जो सुरक्षा घेरा हटते ही भय बन जाता है जैसे पैराशूट जम्पिंग का रोमांच पैराशूट के सही समय पर खुलने में ही है. अब तो गाँव में रहना नहीं होता लेकिन समाचार पत्रों में अक्सर हाथियों के गाँव में घुसने, खेतो को रौंदने, लोगो को कुचल देने की खबरे उस काली रात की याद दिला जाती है और मन उस रात की रोमांचक ख़ुशी को महसूस करने के लिए शर्मिंदा हो उठता है.
छत्तीसगढ़ में विशेषकर उत्तरी छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा, रायगढ़, कोरबा जिलों में हाथियों का आतंक बहुत अधिक है. हाथियों से प्रतिवर्ष लाखों रुपयों का नुकसान हो रहा है और प्रतिवर्ष सैकड़ो जाने जा रही है. मानव की ओर से यही कारण है कि अब गाँव वाले भी हाथियों के प्रति असहिष्णु हो गए है. एक अनुमान के मुताबिक अभी यहाँ लगभग 100 हाथी है एवं इनसे लगभग 435 गाँव प्रभावित हैं.इस क्षेत्र के रहवासी रात-दिन आतंक के साये में जीने को मजबूर है. उनकी हर रात हर एक खटके पर चौंकते बीतती है.साल भर की खेतो में की गई मेहनत कुछ ही मिनटों में कूड़े में बदल जाती है. जिंदगी भर की मेहनत उनका घर आँखों के सामने तहस-नहस हो जाता है और उसको बचाने की कीमत खुद की,परिवार की जान हो सकती है.इसके बाद भी मेहनती,साहसी बाशिंदे हाथियों को गाँव में आने से रोकने की हर संभव कोशिश करते है.
प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ हाथियों का वास-स्थल रहा है. मुग़ल काल में भी सेना हेतु हाथियों की आपूर्ति इस क्षेत्र से करने के उल्लेख आते है. धीरे-धीरे सन1910 तक हाथियों ने स्थानीय रूप से छत्तीसगढ़ क्षेत्र छोड़ दिया था पर सन 1988 से हाथी उड़ीसा, बिहार क्षेत्र से पुन: छत्तीसगढ़ में आने लगे.वर्त्तमान में छत्तीसगढ़ में आतंक मचाते हाथी ओडिशा, बिहार राज्यों में अनियंत्रित खनन एवं वनों की अवैध कटाई से वनों की कमी के कारण अपने लिए उपयुक्त आवास तलाश रहे प्रवासी हाथी है . वस्तुत: हाथियों को अपने विशाल शरीर के मुताबिक रहने-खाने हेतु भी बहुत विशाल क्षेत्र की आवश्यकता होती है वर्त्तमान में इतने विस्तृत वन हाथियों के क्षेत्र में नही रह गए है.अत: उन्हें एक वन क्षेत्र से दुसरे वन क्षेत्र में जाना पड़ता है किन्तु उन्हें इस प्रवास के लिए सुरक्षित कोरिडोर भी उपलब्ध नहीं है.मनुष्य एवं हाथी के मध्य असामंजस्य का यही कारण है. छत्तीसगढ़ शासन इस समस्या के निवारण के लिए प्रयत्नशील है. इस हेतु शासन ने प्रसिद्ध पर्यावरणविद श्री माइक पाण्डेय (जिनकी हाथियों के प्रवास पर आधारित फिल्म" द लास्ट माइग्रैशन' को ग्रीन आस्कर अवार्ड मिला था) एवं उनके अर्थ मैटर फाउन्डेशन के साथ भी कार्य किया है. जिसमे प्रशिक्षित हाथियों के माध्यम से जंगली हाथियों पर नियंत्रण के प्रयास किये गए. इसके अलावा समस्या के स्थायी निवारण हेतु मार्च 2005 में विधानसभा ने दो एलिफैंट रिजर्व क्षेत्र के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया है. इस हेतु कोरबा के लेमरू क्षेत्र( जो कुदमुरा फोरेस्ट रेंज में आता है) एवं बादलखोल- तमोरपिंगला अभ्यारण्य का चयन किया गया है.आशा है की यह एलिफैंट रिजर्व क्षेत्र हाथियों को उपयुक्त आवास उपलब्ध कराएगा और मानव एवं हाथियों के बीच का असामंजस्य समाप्त हो उत्तरी छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों से हाथियों का आतंक दूर हो सकेगा.
इस क्षेत्र में हाथियों के उत्पात की सूचनाएं मिलते रहती हैं। हाथियों द्वारा ग्रामीणों के घरों को तोड़ कर उन्हे मार डालना अफ़सोस जनक है। कुछ वर्षों पूर्व आसाम से भी एक्सपर्ट बुलाए गए थे, लेकिन ढाक के वही तीन पात निकले।
ReplyDeleteहाथियों की हलचल को आपने रिपार्ताज़ का रूप दिया ..समस्या को भी उकेरा और निजात के प्रयासों का उल्लेख किया ..आपका विवरण आँखों जैसा हाल लगता है
ReplyDeleteपेट की समस्या , सीधे साधे हाथियों को गाँव तक पंहुचा देती है !
ReplyDeleteउन्हें नहीं मालूम वे क्या कर रहे हैं...नहीं मालूम इंसानों किस गलती पर उन्हें अपना दुश्मन मानते हैं ....
शुभकामनायें !
यह कहानी है?
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.........
ReplyDelete@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी
ReplyDeleteयह कहानी नहीं हाथियों की समस्या का एक अनुभव है जिसके साथ समस्या के कारण और हल करने के प्रयासों का उल्लेख है.
aapka ye anubhaw padhne men bahot achcha laga......
ReplyDeleteकल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
कुछ सार्थक उपचार आवश्यक है इनका...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी लेखन...
सादर.
रोचक प्रस्तुति ... हाथियों के उपद्रव को रोकने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए .
ReplyDeleteकभी मनुष्य हाथियों के निवास स्थान पर कब्ज़ा करते हैं और कभी हाथी मनुष्यों के...इस समस्या का हल होना चाहिए...रोचक और सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
ReplyDeletebahut badiya rochak prastuti.. .. gramin khsetron mein pryapt dhayan nahi jaana dukhad hai...
ReplyDeletebahut badiya anukarniya aur sarthak prastuti..
समाधान के साथ समस्या पर सार्थक आलेख.
ReplyDeleteaasha karti hun jald hi is samayshya ka ant ho taki hathi sach me sathi jese lagne lage...achchi prastuti..
ReplyDeleteWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली